सुभाष राज स्वतंत्र पत्रकार:

लगभग अस्सी साल बाद दुनिया फिर उसी संकट से दो-चार है जिसके चलते आठ दशक पहले दूसरा विश्वयुद्ध हुआ था। उस विश्व युद्ध के गर्भ में भी जातीय व नस्लीय श्रेष्ठता के साथ ही नेताओं का दम्भ जिम्मेदार था तो आज भी दुनिया अमीर और गरीब देशों के बीच उसी तरह बंटी हुई है, जिस तरह दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त थी। अगर आज के हालात की बात की जाए तो पश्चिम एशिया में इजरायल और ईरान के बीच तनाव चरम पर है। दक्षिण एशिया में अशांति बढ़ रही है।

चीन के आक्रामक रवैये की वजह से उसके दक्षिणी हिस्से यानी दक्षिण चीन में तनाव बढ़ रहा है। यूक्रेन-रूस युद्ध के साथ ही भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता जारी है। कुल मिलाकर मौजूदा विश्व संक्रमण के दौर से गुजर रहा है। अंतरराष्ट्रीय संधियां विफल हो रहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है। अगले पांच वर्षों में दुनिया के कुछ क्षेत्रों को गंभीर परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और गंभीर हो सकते हैं।

इससे प्राकृतिक आपदाएं बढ़ सकती हैं। महामारियों का खतरा बढ़ने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता और बढ़ सकती है। इससे आर्थिक मंदी और बेरोजगारी की बाढ़ आ सकती है। प्रौद्योगिकी विकास के साथ, निजता और सुरक्षा के मुद्दे भी समूचे विश्व के समक्ष बड़ी समस्या के रूप में सामने आ सकते हैं। असल में अभी जलवायु परिवर्तन मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, जिससे बीमारियों और मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है।

जानवरों से मानवों में सार्स और एबोला के विषाणुओं का प्रसार चिकित्सा विज्ञानियों के लिए बड़ी पहेली बन सकते हैं। इससे विकासशील देशों को स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरी के कारण महामारियों का करना पड़ सकता है। अगले पांच वर्षों में विश्व में आर्थिक विषमता बढ़ने की संभावना है। क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में असमानता बढ़ रही है। प्रौद्योगिकी का विस्तार भी आर्थिक विषमता को आगे बढ़ा रहा है। शिक्षा और कौशल की लगातार कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग आर्थिक अवसरों से वंचित हो सकते हैं। राजनीतिक अस्थिरता की वजह से निवेश और आर्थिक विकास प्रभावित होंगे और ग्लोबल साउथ के देश फिर से गरीबी के कुचक्र में फंस सकते हैं।

अगले पांच वर्षों में अमेरिका, चीन, और रूस जैसी महाशक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है। मध्य पूर्व, यूक्रेन और कश्मीर में हालात और बिगड़ सकते हैं। आप्रवासन और शरणार्थी संकट के कारण राजनीतिक तनाव भी बढ़ने की पूरी संभावना है।आर्थिक अस्थिरता, वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी। विश्व में प्रौद्योगिकी में निजता और डेटा सुरक्षा बड़ी चुनौती पेश करेगी। डेटा की निगरानी भी एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि इससे देशों की सुरक्षा में सेंध का खतरा बढ़ रहा है। कृत्रिम मेधा के विकास के साथ निजता के मुद्दे और जटिल हो जाएंगे। ‘इंटरनेट आफ थिंग्स’ के विकास के साथ अधिक से अधिक डिवाइसेज आनलाइन होंगे, जिससे निजता के मुद्दे और उलझेंगे।

अगर सकारात्मक ढंग से सोचें तो दुनिया के देशों को जलवायु परिवर्तन के कारणों को समझना और उन्हें सुलझाना होगा। इसके अलावा जीवाश्म ईंधन जलने से सुलग रहे वायुमंडल को राहत देने के लिए ग्रीन एनर्जी का उपयोग बढ़ाना होगा। जहां तक भारत का सवाल है तो उसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर भारत, प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विश्व का प्रमुख प्रौद्योगिकी केंद्र बनने जा रहा है। वैसे भी भारत के पास वैश्विक मुद्दों जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और आर्थिक विकास में भागीदारी निभाने की भरपूर क्षमता है।

अगर विश्व को नष्ट होने से बचाना है तो जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी और अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाने के साथ ही वनस्पति की विविधता के संरक्षण और वृक्षारोपण पर पूरा ध्यान देना होगा। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाना और महामारियों से लड़ने की तैयारियों को युद्ध स्तर तक लाना होगा। वैश्विक सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान को भी बढ़ावा देना होगा। विकासशील देशों को स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत बनाना होगा। आर्थिक विषमता को कम करने के लिए शिक्षा और कौशल को बढ़ावा देना होगा, ताकि लोग आर्थिक अवसरों का लाभ उठा सकें।

विश्व को संघर्ष समाधान प्रयासों के साथ-साथ आर्थिक विकास की प्रक्रिया को भी धार देनी होगी। प्रौद्योगिकी में निजता की रक्षा, डेटा सुरक्षा को मजबूत बनाना होग। प्रौद्योगिकी विकास में निजता के अधिकार को शामिल करके निजता हनन को कम करने के लिए लोगों को निजता के बारे में शिक्षित करना होगा, ताकि वे अपनी निजता की रक्षा कर सकें।

असल में भारत की संस्कृति के मूल में जो पर्यावरणीय चेतना पैठी हुई है, वह पर्यावरण संरक्षण के प्रति बचपन से ही व्यक्तियों को जागरूक बनाती है। जहां तक विश्व के संघर्ष में उलझे देशों का सवाल है तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए प्रयासरत है। उसके पास ऐसी क्षमता और नैतिक बल है कि वह वैश्विक शांति और सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक नेतृत्व की क्षमता भी भारत के पास है।