जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो परिवार के लोग यही सोचते हैं कि सारी जमा पूंजी, बीमा, पीएफ, एफडी या बैंक अकाउंट की रकम उन्हीं के पास आ जाएगी। वैसे तो मृतक ने किसी को नॉमिनी बना लेता है। ऐसे में सभी को लगता है कि मृतक की संपत्ति नॉमिनी को ही मिलेगी। पर क्या वास्तव में ऐसा हो होता है। क्या नॉमिनी हो जाने से व्यक्ति कानूनी रुप से संपत्ति उसके हिस्से में आ जाएगी। आइए इसके बारे में डिटेल में जानते हैं।
नॉमिनी के बारे में जानें
नॉमिनी की बात करें तो बैंक खाता खोलते हैं, पीएफ, एलआईसी या म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो उस समय एक नॉमिनी का नाम दिया जाता है। यानी अगर खाताधारक की मौत हो जाती है तो इस खाते की रकम को नॉमिनी को मिलती है। पर इसका मतलब यह नहीं है कि पैसा या संपत्ति नॉमनी की हो जाएगी। दरअसल नॉमिनी एक तरह का ट्रस्टी होता है। यानी एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह होता है, जिसमें रकम अस्थाई तौर मिलता है, जिससे कि असली हकदारों तक पहुंचाया जा सके।
कौन माना जाता संपत्ति का असली हकदार
मृतक की संपत्ति में वह व्यक्ति असली हकदार होता है जिसका नाम मृतक की वसीयत में लिखा होता है। इसे कानूनी उत्तराधिकार माना जाता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की मानें तो पति की मौत के बाद संपत्ति में उसकी पत्नी, बेटे-बेटी, माता-पिता सभी उत्तराधिकारी होते हैं। अगर वसीयत में किसी नाम नहीं होता है तो इसी हिसाब से संपत्ति में बटवारा किया जाता है।
कानून क्या कहता है?
Insurance Act की धारा 39(7) के मुताबिक, बीमा कंपनी की यह जिम्मेदारी होती है कि बीमा की रकम को वैध रूप से नॉमिनी बनाए व्यक्ति को दे। वैसे इससे यह नहीं होता है कि नॉमिनी उस रकम को खुद की संपत्ति मान ले। दरअसल नॉमिनी इस रकम को मृतक के कानूनी वारिसों के लिए एक ट्रस्टी रूप में रखता है।
बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 39(7) के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति की मौत बिना किसी वसीयत के हो जाती है तो उस संपत्ति को मां, पत्नी और बच्चों में बराबर बांटी जनि चाहिए। यही नियम फिक्स्ड डिपॉजिट्स को लेकर भी है। अगर नॉमिनी इस रकम को असली हकदारों को देने से मना करता है तो कानूनी वारिस अदालत में न्याय मांग सकते हैं।
नॉमिनी और वारिस पर इलाहबाद हाई कोर्ट को लेकर आदेश
रिपोर्ट की मानें तो इसी साल इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक मामला था, जिसमें कहा गया है कि बीमा की रकम पर नॉमिनी का हक़ नहीं होता है। अगर वह कानूनी वारिसों को उनका हक़ नहीं देता है तो वारिस अदालत में दावा में कर सकता है।
इस हिसाब से कहा जा सकता है कि नॉमिनी सिर्फ माध्यम के रूप में माना जाता है, मालिक नहीं। अगर्ब कोई विवाद होता है तो कानूनी वारिसों को अदालत से अपना अधिकार मिल जाता है।
क्या है नॉमिनी का महत्त्व
आमतौर पर नॉमिनी वारिस हुआ करता है। नॉमिनी को अन्य वारिस को इतनी ही प्राथमिकता मिलती है कि वह संपत्ति का पहला प्राप्तकर्ता बन जाता है। इसकी वजह से तय होता है कि पैसे को किसी गलत हाथ में जाने से पहले एक भरोसेमंद व्यक्ति के पास पहुंचा देता है।
ऐसे में जरूरी है कि किसी को सिर्फ नॉमिनी न बनाएं बल्कि एक वसीयत भी लिखें, जिसकी वजह से साफ हो जाता है कि संपत्ति पर किसका कितना हक़ होगा। अगर वसीयत नहीं है तो यह भी जानना जरूरी है कि उत्तराधिकार कानून क्या कहता है, जिससे कि परिवार में विवाद न हो।