Landlord: हाल ही में केंद्र सरकार ने घर किराए पर देने से संबंधित नियमों को और सख्त बना दिया है। मकान मालिकों को अब किराए की आय पर कर (टैक्स) देने के लिए कुछ नई शर्तों का पालन करना होगा। यह बदलाव टैक्स चोरी रोकने और किराए की आय को सही तरीके से रिकॉर्ड करने के उद्देश्य से किए गए हैं।

मुख्य बिंदु:

1. किराए की आय पर टैक्स का दायरा: अब मकान मालिकों को किराए से प्राप्त आय को अपनी कर योग्य आय में शामिल करना होगा।

2. किरायेदार की जानकारी अनिवार्य: मकान मालिकों को किरायेदार का आधार कार्ड, पैन कार्ड और अन्य पहचान विवरण अधिकारियों को देना अनिवार्य हो सकता है।

3. लिखित अनुबंध जरूरी: अब किराए के लिए लिखित अनुबंध (रेंट एग्रीमेंट) को पंजीकृत करवाना अनिवार्य हो सकता है।

4. संपत्ति के मूल्यांकन का नियम: संपत्ति के मूल्यांकन के आधार पर टैक्स का निर्धारण किया जाएगा, जिससे टैक्स चोरी रोकने में मदद मिलेगी।

प्रभाव:

किराए से आय प्राप्त करने वाले मकान मालिकों पर टैक्स का बोझ बढ़ सकता है।

नियमों का पालन न करने पर जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।

इससे किराए के मकानों की लागत भी प्रभावित हो सकती है।

अगर आप अपने घर को किराए पर देने की योजना बना रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप इन नए नियमों को ध्यान में रखते हुए किसी वित्तीय सलाहकार से परामर्श लें।

नए नियम मकान मालिकों और किरायेदारों दोनों के लिए बड़ी जिम्मेदारी लेकर आए हैं। आइए, इस विषय में और विस्तार से समझते हैं:

1. किराए की आय पर टैक्स:

सरकार ने किराए से होने वाली आय को पूरी तरह कर के दायरे में लाने की योजना बनाई है।

यदि आपकी वार्षिक किराए की आय एक निश्चित सीमा (जैसे ₹2.5 लाख या अधिक) से ज्यादा है, तो इसे इनकम टैक्स रिटर्न में दिखाना अनिवार्य होगा।

2. पंजीकृत रेंट एग्रीमेंट:

सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी रेंट एग्रीमेंट पंजीकृत (रजिस्टर्ड) हों। इससे विवाद और धोखाधड़ी के मामलों में कमी आएगी।

बिना रजिस्ट्रेशन वाले एग्रीमेंट पर जुर्माना या कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

3. किरायेदार की पहचान:

मकान मालिक को किरायेदार की पूरी जानकारी जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड और निवास प्रमाण पत्र एकत्र करना होगा।

यह जानकारी पुलिस वेरिफिकेशन के लिए जरूरी होगी, ताकि कानून-व्यवस्था का पालन हो सके।

4. कर दरें और खर्चे:

मकान मालिक अपने किराए की आय में से कुछ खर्च जैसे मेंटेनेंस, प्रॉपर्टी टैक्स, लोन का ब्याज आदि घटा सकते हैं।

इससे उनकी कर योग्य आय कम हो सकती है, लेकिन सभी खर्चों का प्रामाणिक सबूत देना जरूरी होगा।

5. फायदे और नुकसान:

फायदे:

कानूनी प्रक्रिया पारदर्शी होगी।

किरायेदारों के रिकॉर्ड होने से सुरक्षा बढ़ेगी।
नुकसान:

मकान मालिकों पर टैक्स और कानूनी प्रक्रियाओं का बोझ बढ़ेगा।

छोटी संपत्तियों को किराए पर देने वालों के लिए यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है।