अमित मिश्रा, नई दिल्लीः महाराष्ट्र में राजनीति के भीष्म पितामह माने जाने वाले नेता शरद पवार ने विधानसभा चुनाव के लिए अपना इमोशनल कार्ड खेल दिया है। उन्होंने अपने राजनीतिक ठहराव का संकेत दिया है। उनका यह दांव कितना कारगर होगा यह तो समय ही बताएगा। पर उनके इस दांव से महाराष्ट्र में चर्चाएं तेज हो गई है। विरोधी पक्ष भी पूरी तरह से सतर्क हो गया है। विरोधी पक्ष ही नहीं उनके सहयोगियों को भी पता है कि शरद पवार कोई बातें यूं ही नहीं कहा करते हैं। उनकी बातों का दूरगामी अर्थ होता है।

उनकी भावनात्मक बातों में भी राजनीति छुपी रहती है। दरअसल महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का नाम एक बड़ा और प्रभावशाली चेहरा है। वह न केवल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के संस्थापक हैं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने वाले एक कुशल रणनीतिकार भी हैं। पिछले कुछ दशकों में पवार ने अपनी राजनीति के विभिन्न रंग दिखाए हैं, और अब 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होने में कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। ऐसे में उन्होंने अपने राजनीतिक करियर का “आखिरी दांव” चला है। महाविकास अघाड़ी भी शरद पवार पर ज्यादा निर्भर है। इस गठबंधन को जोड़े रखने में इनका बड़ा योगदान है।

लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन ने महायुति गठबंधन को बुरी तरह से परास्त किया। हालांकि महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सबसे बेहतर प्रदर्शन कांग्रेस का रहा। पर असली भूमिका में शरद पवार ही इस जीत की पटकथा लिखी। वह भी तब जब शरद पवार की एनसीपी टूट कर उनके भतीजे अ​जित पवार के साथ चली गई। पार्टी के अधिकतर नेताओं और चुनाव चिन्ह तक को अजित पवार ने ह​थिया लिया।

नए चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव लड़ने वाले शरद पवार ने अपने भतीजे को तो झटका दिया ही, महाविकास अघाड़ी को भी मजबूती के साथ खड़ा कर दिया। लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की बढ़त मानी जाने लगी। हालांकि महायुति ने लोकसभा चुनाव से सबक सीखते हुए अच्छी वापसी की है। विधानसभा चुनाव दोनों ओर से बराबरी की स्थिति में आ पहुंचा है।

विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में नुकसान की भारपाई करने के लिए महायुति ने पूरा जोर लगा दिया है। ऐसे में महाविकास अघाड़ी की निगाहें शरद पवार के राजनीतिक चालों पर टिक गई है। भाजपा चुनावी मैदान के अंतिम ओवरों में बहुत अच्छा खेलती है। हारी हुई बाजी को जीतने में भाजपा माहिर है। इसी को देखते हुए महाविकास अघाड़ी शरद पवार पर ज्यादा भरोसा करने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। शरद पवार ने भी भाजपा की महारतों को देख इमोशनल कार्ड खेल दिया है।

महाविकास अघाड़ी में टिकट बंटवारें के समय यह माना जा रहा था कि शरद पवार वाली एनसीपी को 60—65 सीटें मिलेंगी। लेकिन अपनी राजनीतिक कौशल में माहिर इस भीष्म पितामह ने महाविकास ​अघाड़ी के बीच सीटों को लेकर ऐसी चालें चली कि गठबंधन में 90 सीटें हासिल कर ली। सबसे पीछे रहने की संभावना वाली पार्टी गठबंधन में दूसरे स्थान पर रही। शिवसेना यूबीटी को उन्होंने पीछे ढकेल दिया। जबकि माना जा रहा था कि कांग्रेस के बाद शिवसेना का नंबर रहेगा। पर शरद पवार ने बिना शोर गुल किए अपनी सीटों की संख्या बढ़ा ली।

वैसे भी कहा जाता है कि महाराष्ट्र में शरद पवार की राजनीति हमेशा से लचीली और परिस्थितियों के अनुसार अपनी दिशा बदलने वाली रही है। वह इस समय राज्य में अपनी छवि को बनाए रखने और गठबंधन के हिस्सों के बीच सामंजस्य स्थापित कर उसे आगे ले जाने में पूरा जोर लगा रहे है। विधानसभा चुनाव में सफलता उनके लिए बहुत जरूरी है। अपना आखिरी दांव चलने के पीछे भी यही कारण बताया जा रहा है।

यह भी कहा जाता है कि पवार की राजनीति में मोल-भाव करने की अद्भुत कला है। शरद पवार की रणनीति में हमेशा से बाहरी समर्थन जुटाने की कला रही है। वे विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करके अपनी ताकत बढ़ा लेते हैं। हालांकि उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन पवार के पास अभी भी राजनीतिक माचिस है। उनका यह आखिरी दांव राज्य की राजनीति में उनकी स्थायी स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए हो सकता है।