नई दिल्ली: विराट कोहली का प्रदर्शन भारतीय टेस्ट क्रिकेट का एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है, लेकिन न्यूजीलैंड के खिलाफ पुणे टेस्ट में उनकी पहली पारी निराशाजनक रही। कोहली महज 1 रन बनाकर आउट हो गए, और टीम इंडिया की पारी 156 रनों पर सिमट गई। स्पिन गेंदबाजी के खिलाफ कोहली का संघर्ष पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, खासकर एशियाई पिचों पर।

विराट कोहली के करियर में लेफ्ट-आर्म ऑर्थोडॉक्स गेंदबाजों के खिलाफ संघर्ष सबसे ज्यादा रहा है। 2021 से, वे 26 पारियों में 21 बार स्पिन गेंदबाजों का शिकार बने हैं। इनमें से 10 बार उन्हें लेफ्ट-आर्म ऑर्थोडॉक्स गेंदबाजों ने आउट किया है। कोहली के लिए मिचेल सैंटनर जैसे गेंदबाज अक्सर कठिनाई खड़ी करते हैं। पुणे टेस्ट में भी, सैंटनर के एक लो फुल टॉस बॉल पर कोहली चूक गए और पवेलियन लौटे। यह घटना बताती है कि किस तरह स्पिन के खिलाफ उनकी कमजोरी ने उनके गेम पर नेगेटिव प्रभाव डाला है।

विराट का खेलने का स्टाइल उन्हें एक आक्रामक बल्लेबाज बनाता है, लेकिन स्पिन के खिलाफ आक्रमण उन्हें कई बार परेशानी में डालता है। कोहली के कई आउट होने का कारण यही है कि वे स्पिन के खिलाफ जल्दी रन बनाने की कोशिश में जोखिम उठा बैठते हैं। एशियाई पिचों पर, जहां स्पिन का बोलबाला होता है, कोहली की यह आक्रामक खेल अक्सर उनके विकेट का कारण बनता है।

विराट कोहली के स्पिन के खिलाफ खराब प्रदर्शन ने न सिर्फ उनके औसत को गिराया है, बल्कि उनके आत्मविश्वास को भी प्रभावित किया है। बैंगलोर टेस्ट में कोहली ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 70 रनों की पारी खेली थी, जो उनके लिए पॉजिटिव संकेत था। हालांकि, दूसरी पारी में उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन पहली पारी में जीरो पर आउट हो गए थे। यह मैच दर्शाता है कि कोहली के खेल में कुछ सकारात्मक बदलाव आए हैं, लेकिन स्पिन के खिलाफ गेम सुधारने में कमी है।

कानपुर टेस्ट में कोहली ने बांग्लादेश के खिलाफ पहली पारी में 47 रन बनाए थे और दूसरी पारी में नाबाद 29 रन का योगदान दिया था। हालांकि, चेन्नई टेस्ट में वे महज 6 रन बनाकर आउट हो गए थे। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि कोहली की इन इन्निंग्स में रेगुलरिटी का अभाव रहा है।

यह देखना रोमांचक होगा कि विराट कोहली इन चुनौतियों को कैसे पार करते हैं और क्या वे एक बार फिर टेस्ट क्रिकेट में अपने पुराने अंदाज में लौट पाते हैं।