Bengali Kali Puja: दीपावली का त्यौहार भारत समेत पूरे विश्व में धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन बंगाली परिवारों में दिवाली कि रात्रि को माँ काली जी कि पूजा अर्चना कि जाती है। दरअसल, इस समाज में नवरात्रि पर माँ दुर्गा,शरद पूर्णिमा पर माता लक्ष्मी जी कि पूजा कि जाती है। दीपावली कि आधी रात्रि को पूजा अर्चना कर माँ काली जी को भोग लगाया जाता है। साथ ही इस बंगाली समाज में काली पूजा 31 अक्टूबर के गुरूवार के दिन होगी।

ऐसे में जानते हैँ कि बंगाली समाज में किस तरह कि काली पूजा का प्रचलन है:

काली भोग में होती हैँ ये चीजें:

मंदिर में रात्रि को निशाकाल में देवी कि पूजा अर्चना कि  जाएगी। कमल के पुष्प से देवी जी को सजाया जाता है साथ ही बेलपत्र को भी अर्पित किया जाता है। इन सभी के साथ खीरा, केला, पेठा कि बलि दी जाती है। इसके बाद भोग लगाया जाता है, जिसमें पनीर, पुलाव समेत सात प्रकार कि सब्जी बनाई जाती है। रात भर पूजा के बाद फिर भंडारा का आयोजन किया जाता है।

2 नवम्बर को लगाया जाता है अन्नकूट 

दरअसल, 31 अक्टूबर कि रात काली पूजन किया जाएगा और 2 नवंबर को देवी को अन्नकूट का भोग अर्पित किया जाता है। इसमें 56 प्रकार के पकवान माता को चढ़ाया जाता है। इसमें बंगाली मिठाई दरवेश, कदमखीर और कालाजाम का भोग लगाया जाता है। फिर शाम को प्रसाद बाँटा जाता है। एक अमावस्या को माँ दुर्गा जी का आगमन होता है, इसे शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता है। साथ ही दूसरी नवरात्रि को माता काली जी कि पूजा कि जाती है।

फिर दशमी तिथि के दिन 6 दिन बाद यानि शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी जी कि पूजा कि जाती है। देश के अन्य हिस्सों में माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश जी कि पूजा जी कि जाती है, लेकिन बंगाली समाज में लक्ष्मी पूजा के दिन केवल माँ लक्ष्मी पूजा के दिन केवल माँ लक्ष्मी कि प्रतिमा या तस्वीर ही स्थापित कि जाती है।

क्या है माता रानी का पूजा और महत्व 

देवी दुर्गा कि दस महाविद्याओं के स्वरूप में माता काली प्रमुख स्थान पर है। माता काली कि पूजा अर्चना करने से हर तरह के भय और नेगेटिविटी खत्म हो जाती है।

इसके अलावा सभी रोग और दोष से भी मुक्ति मिलती है। माता काली कि पूजा करने से सभी ग्रहों का शुभ प्रभाव पड़ता है। वहीं, राहु केतु कि शांति के लिए पाठ किया जाता है। काली माता कि पूजा हर तरह का प्रभाव खत्म हो जाता है।