Kisan News: किसानों के लिए पराली जलाना एक बड़ी समस्या बन गई है, क्योंकि इससे पर्यावरणीय नुकसान होता है और इसके खिलाफ जुर्माना भी लगाया जाता है। अब, छत्तीसगढ़ सरकार और अन्य राज्य सरकारों ने किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कुछ वैकल्पिक उपाय पेश किए हैं।

किसान क्या कर सकते हैं?

1. पराली का जैविक उपयोग:

किसानों को पराली का जैविक खाद बनाने के लिए उपयोग करने का प्रोत्साहन दिया जा सकता है। यह प्राकृतिक खाद तैयार करने में मदद करता है और किसानों के खर्च को कम करता है।

2. पराली को खुद बनाने का उपकरण:

किसानों को पराली को नष्ट करने और उसे उपयोगी बनाने के लिए बायो-एनजी उपकरण दिए जा सकते हैं। इन उपकरणों से पराली को जैविक गैस (बायो-गैस) में बदला जा सकता है, जिससे ऊर्जा का उत्पादन होता है।

3. हैप्पी सीडर मशीन का उपयोग:

हैप्पी सीडर मशीन के जरिए पराली को जमीन में मिलाकर खेती के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है। यह एक प्रभावी तरीका है, जिससे खेत में किसी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता।

4. पराली को पशुपालकों को देना:

किसानों को अपनी पराली को पशुपालकों को बेचने का विकल्प दिया जा सकता है। इससे पशुओं को चारा मिलता है और किसानों को भी फायदा होता है।

5. बायोमास प्लांट्स:

किसानों को बायोमास प्लांट्स में पराली भेजने की सुविधा मिल सकती है। इन प्लांट्स में पराली का उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जाता है।

दोगुना जुर्माना:

अगर किसान पराली जलाने की बजाय इन वैकल्पिक तरीकों का उपयोग करते हैं, तो उन्हें दोगुना जुर्माना से बचने का मौका मिलेगा। इससे किसान प्रदूषण को कम करने में मदद करेंगे और साथ ही सरकार की तरफ से दिए गए प्रोत्साहन का भी लाभ उठा सकेंगे।

सरकार इस तरह की पहल से किसानों को जागरूक कर रही है और उन्हें पराली जलाने के नुकसान के बारे में समझा रही है, ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके।

पराली को जलाने के बजाय किसानों के लिए और भी विकल्प:

1. पराली को सिलेज़ में बदलना:

पराली को सिलेज (फेरमेंटेड चारा) में बदलने की प्रक्रिया किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प हो सकती है। इस प्रक्रिया में पराली को पशुओं के लिए चारे के रूप में परिवर्तित किया जाता है, जिससे उन्हें पौष्टिक आहार मिलता है और पराली का निस्तारण भी होता है।

2. हैप्पी सीडर और सुपर सीडर का उपयोग:

हैप्पी सीडर और सुपर सीडर जैसे आधुनिक कृषि उपकरणों के माध्यम से किसानों को पराली को खेत में ही दबाने और मिश्रित करने की सुविधा मिलती है। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और पराली जलाने का खतरा कम हो जाता है। यह तकनीक न केवल पर्यावरण को बचाती है, बल्कि फसल की उर्वरक क्षमता में भी सुधार करती है।