Vastu For Wearing Mauli: सनातन धर्म में सभी मांगलिक कार्यों के समय कलावा का बांधना बहुत ही ज्यादा शुभ माना जाता है। वहीं, कलावा यानि कि मौली बाँधने कि कृपा कोई आज से नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है।
यदि धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि मानें तो मोली को रक्षा सूत्र के रूप में बाँधने कि परम्परा तब से प्रारम्भ हुई ज़ब असुरों के राजा बलि कि अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँध दिया था।
तब से लेकर के आज तक ये सनातन धर्म के धार्मिक आस्था और शुभता का प्रतीक माना जाता है। वहीं, कलावा ज़ब नया नया होता है तो हाथो कि सुंदरता को दो गुना तक अधिक बढ़ा देता है।
लेकिन ये पुराना होने लगता है तो ये अपने आप भी टूट जाता है और ज्यादा पुराना कलावा पहनना अशुभता का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसे में ज़ब भी मौली को बांधे तब भी कुछ विशेष बातों का खास प्रकार से ध्यान दें, वरना सकारात्मक प्रभाव कि जगह नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैँ।
ये रहे मौली बाँधने के कुछ खास नियम:
धर्म शास्त्र के अनुसार मानें तो कभी भी अधिक दिनों तक कलावा नहीं बांधना चाहिए वरना ये अशुभता का बड़ा कारण बन जाती हैँ। कलावे को प्रत्येक 10 से 15 दिनों के लिए ही ज्यादा से ज्यादा बांधना चाहिए।
वास्तु के नियम में अनुसार अविवहित बालिकाओं और कन्यायों को दाएँ हाथ में कलावा बांधना चाहिए तो महिलाओं और मैरिड लोगों को बाएं ओर कलावा बांधना बहुत ही ज्यादा शुभ होता है।
हिन्दू धर्म कि मान्यतोंओं के मुताबिक मानें तो रेशे को उतरकर नई मोली को बांधकर मंगलवार या शनिवार के दिन बांधना चाहिए, क्युंकि तभी ये शुभ माना नमाना जाता है।
यदि वास्तु के हिसाब से देखें तो इस बार आपने जिस कलावे को इसलिए बार हाथ में बाँधा था, उसी प्रकार इसलिए बार दूसरे हाथों में कालावे को बांधे। वहीं, पुराने कलावे को नदी या कुएँ में डाल दें या इसे पीपल के पेड़ के नींच रख दें।