भारत एक बहुजातीय और सांस्कृतिक विविधता वाला देश है, जहां जाति व्यवस्था का ऐतिहासिक महत्व रहा है। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में जातियों का विभाजन धार्मिक और सामाजिक आधार पर किया गया है। जातियों की संख्या को लेकर कोई स्पष्ट और आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, क्योंकि भारत सरकार ने जाति आधारित जनगणना 1931 के बाद से नहीं की है। 

1931 में जातीय जनगणना की गई थी उसे समय भारत में जातियों की संख्या 4,147 घोषित की गई थी  इसके बावजूद, भारत में हजारों जातियों और उप-जातियों का अस्तित्व माना जाता है, जो समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों प्रतिनिधित्व करती हैं।

देश के अंदर जातियों का वर्गीकरण 

भारत में जातियों को मुख्य रूप से चार वर्णों में विभाजित किया गया है:

  1. ब्राह्मण – पारंपरिक रूप से धार्मिक और शैक्षिक कार्यों में संलग्न।
  2. क्षत्रिय – शासक और योद्धा वर्ग।
  3. वैश्य – व्यापारी और कृषि कार्यों में लगे लोग।
  4. शूद्र – सेवा और मजदूरी करने वाला वर्ग।

इन वर्णों के अलावा, समाज में अन्य कई उप-जातियां और समूह भी मौजूद हैं। भारत के संविधान ने जातीय भेदभाव को समाप्त करने और पिछड़े वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए जातियों को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा है:

  • अनुसूचित जाति (Scheduled Castes – SC): सामाजिक रूप से हाशिए पर रहे और जातीय भेदभाव का सामना करने वाले लोग
  • अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes – ST): वे जनजातीय समूह जो सांस्कृतिक रूप से अलग हैं और मुख्यधारा से काफी दूर रहे हैं।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes – OBC): सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए लोग।

2011 के जातीय जनगणना से कुछ बातें सामने आई है

1931 की जनगणना के अनुसार, भारत में जातियों की संख्या हजारों में थी। उस समय की जाति आधारित जनगणना में लगभग 4,000 से अधिक जातियों का विवरण दर्ज किया गया था। इसके बाद 2011 की जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के आंकड़े प्रकाशित किए गए, जो इस प्रकार हैं:

  • अनुसूचित जाति (SC): 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जातियों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का 16.6% है, जो लगभग 20 करोड़ के आसपास है।
  • अनुसूचित जनजाति (ST): अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 8.6% है, जो लगभग 10 करोड़ है।

हालांकि, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और सामान्य वर्ग की जातियों की कोई सटीक संख्या जनगणना में उपलब्ध नहीं है, लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, OBC की संख्या देशभर में 52 करोड निर्धारित की गई है।

जाति आधारित जनगणना की मांग

समाज के विभिन्न वर्गों और राजनीतिक दलों द्वारा लंबे समय से यह मांग उठाई जा रही है कि सरकार जाति आधारित जनगणना कराए, ताकि समाज में जातियों के वास्तविक आंकड़े सामने आ सकें। इससे नीतियों और योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा। 2021 की जनगणना में जाति आधारित गणना की चर्चा हुई थी, लेकिन इसे अभी तक औपचारिक रूप से लागू नहीं किया गया है।

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