हर किसी को अपने परिवार के स्वास्थ्य की चिंता होती हैं। ऐसे में हेल्थ इश्योरेंस काम आता है। अगर आपके पास हेल्थ इंश्योरेंस हैं तो ये खबर आपके लिए खास हो सकती है। अधिकर लोग हेल्थ पॉलिसी के बारे में नहीं जानते हैं जिसके बाद लोगो को दिक्कत हो जाती है। इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए रेगुलेटर आईआरडीआईए के द्वारा 5 सितंबर को एक मास्टर सर्कुलर को जारी किया गया है। इसका उद्देश्य पॉलिसीधारक को अपने अधिकारों के बारे में बताना है। इस सर्कुलर में लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ इंश्योरेंस के बारे में काफी कुछ बताया गया है। चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

मिलता है 30 दिन का फ्री लुक पीरीयड

लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा धारक को 30 दिन का फ्री लुक पीरियड दिया जाएगा। इतने दिन में धारक अपनी पॉलिसी के बारे में जान सकता है। इसके लिए नियम और शर्ते भी लागू किए गए हैं। वहीं दारक के नियम और शर्तों से संतुष्ट नहीं है तो धारक अपनी पॉलिसी को कैंसिल करा सकता है। इससे पहले कंपनियों के द्वारा 15 दिन का फ्री लुक पीरियड दिया जाता था। लेकिन इस सुविधा के बारे में अधिकतर धारकों को पता नहीं होता था।
आपके लिए ये जानना काफी आवश्यक है कि धारक की मौत होने की स्थिति में इंश्योरेंस कंपनी डेथ क्लेम भी कब देगी। वहीं मौत होने पर इंश्योरेंस कंपनी को डेथ क्लेम के लिए 15 दिन के भीतर प्रोसेस शुरु करना होता है।

क्लेम सेटलमेंट की देरी पर मिलने वाला ब्याज

IRDAI के द्वारा कहा गया है कि यदि कोई धारक अपनी पॉलिसी को सरेंडर करना चाहता है या फिर कुछ पैसे निकालना चाहता है तो आवेदन फाइल करने के 7 दिन के भीतर इंश्योरेंस कंपनी को प्रोसेस पूरा करना है। इस प्रकार कंपनी को पॉलिसी की मैच्योरिटी का भुगतान तय तारीख को करना होगा। इसके अलावा अगर कंपनी के द्वारा क्लेम सेटलमेंट में देरी होती है तो प्रोसेस शुरु होने वाले दिन से 2 फीसदी का ब्याज देना होगा।

नॉमिनेशन कराना है जरूरी

अगर कोई शख्स इंश्योरेंस पॉलिसी की खरीदारी करता है तो उसको प्रोपोजल फॉर्म में ही नॉमिनी के बारे में बताना होगा। धारक की मौत होने की स्थिति में कंपनी इंश्योरेंस रकम का पेमेंट नॉमिनी को की जाती है। वहीं धारक एक से ज्यादा लोगों को नॉमिनी रख सकता है। इसमें ये भी तय होता है कि किस नॉमिनी को सम एश्योर्ड का कितना भाग मिलेगा।

हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम है काफी जरुरी

अगर कंपनी को कैशलेस रिक्वेस्ट प्राप्त होता है तो उसको एक घंटे के भीतर पूरा करना होगा। अगर पेशेंट अस्पताल से डिस्चार्ज होता है तो इस मामले में मिलने वाली रिक्वेस्ट के तीन घंटे के भीतर कंपनी को अप्रूव करना पड़ेगा। सर्कुलर में ये भी कहा गया है कि किसी भी कंडीशन में कंपनी के ऑथराइजेशन में होने वाली देरी से मरीज के डिस्चार्ज के लिए इंतजार नहीं करना है।

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